Saturday, October 11, 2014

संतुलन

एक लम्बी साँस लो
और सो जाओ।

इतना भी मुश्किल नहीं हैं यह करना
हाँ, तकलीफ होगी सोने में
पर फिर सौ से पीछे गिनती शुरू कर देना
नींद अपने आप आ जायेगी। 


देखो खेल सारा दिमाग का हैं
तुम उसको जहां व्यस्त रखोगे
वहाँ वो रहेगा
आखिर दिमाग पे नियंत्रण ही तो
समाज में संतुलन बनाये रखेगा …

(विराम)

रोने की आदत हो गयी हैं तुम्हें
किसी चीज़ की ख़ुशी ही नहीं होती
अरे इन्सान खुश रहने के लिए ही तो
इतनी मेहनत करता हैं
कष्ट उठाता हैं, गाली खाता हैं
मार खाता हैं, भीख मांगता हैं
और तुम हो के...

(विराम)

छोडो...
अब जो मैं कह रहा हूँ वोही करो...
मेरी तरफ देखो
यहाँ, आँखों में
पर अंदर झाँकने की कोशिश मत करना
मेरा विवेक रहता नहीं हैं अब वहाँ
छोड़ आया हूँ
उसे अपने मासूम बचपन के साथ …
तुम भी वही करो
'छोडो!!!'

अभी के लिए
दिमाग में पल रहे भूतों को
गणित का काढ़ा पिला दो
शुरुआत के तौर पर
सौ से शुरू करते हैं
फिर धीरे धीरे आगे बढ़ेंगे
पर गिनती पीछे की तरफ ही करेंगे
जब जमा करना होगा
तो घटा देंगे
गुणा करना होगा
तो बटा देंगे
बाद में सबको
बाँट देंगे।

गुनाह नहीं, गुणा
गणित वाला
गणित सीखें नहीं हो कभी?
स्कूल भी नहीं गयें?
तो किया क्या भाई अब तक?
रहते कहाँ हो?
खाते-पीते कैसे हो?
कुछ काम भी करते हो?
यहां हर एक को काम करना पड़ता हैं
चाहे पसंद हो या नहीं
तुम्हारी किस्मत अच्छी हैं
तुम्हें सोने के लिए भेजा गया हैं
और तुम हो के…

(विराम)

गिनती पीछे की तरफ करनी हैं
वापस जाना हैं
जहांसे यह सारा खेल शुरू हुआ था …
शुन्य तक पहुँचो
तो कुछ समझ आये…
पर ज्यादातर लोग
शुन्य से पहले ही सो जाते हैं …
तुम कहाँ तक पहुंचे हो?
अभी तक सौ पे ही अटके हो?
बड़े ही ढीट हो यार
अपना मकाम छोड़ते ही नहीं हो
देखे हैं मैंने तुम्हारे जैसे कई और
अपने मकान छोड़ते ही नहीं हैं
समाज आगे कैसे बढ़ेगा भाई?
संतुलन के लिए
किसी न किसी को तो
नियंत्रण छोड़ना होगा ना?
छोड़ दो तुम
जो हैं सौ प्रतिशत तुम्हारा
छोड़ दो तुम
अपना संसार सारा

हाँ, नींद उड़ जाती हैं कभी कभी
ऐसा सोचने से…
पर मैं कह रहा हूँ ना
एक लम्बी साँस लो
और सो जाओ
तुम जहां हो
वहांसे एक कदम
पीछे हो जाओ
याद रखो
पहुचना हैं शुन्य तक
जहांसे यह सब शुरू हुआ था

फिर जब सब लोग
शुन्य तक पहुंच जाएंगे
सबको गुणा कर देंगे …

गुनाह नहीं हैं यह
क्योंकि असल में
हम तो बाँट रहे होंगे
नींद, सपनें, रोटियां, लोग

तुम डरो नहीं
तुम्हें जब नींद आएगी
तो सपनें भी आएँगे
और सपनों में
गरम गरम रोटियां होंगी
और रोटियों में
तुम्हें अपने लोग दिखेंगे
भूखें, नंगे, बटें हुएँ …
तुम उन्हें खा लेना
समाज में संतुलन बना रहेगा।

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